देश की स्वाधीनता के बाद भारत की विशालताए अनेकताए देशी रियासतों की समस्याए क्षेत्रीयता और सायदाबिकता की समस्या प्रमुखतः ज्वलन्त थी। देश में अनेकता की एकता के आधार पर राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य से हमारी राजनीतिक व्यवस्था में संघीय ढांचे को स्वीकार किया गया ताकि विभिन्न धर्मोंए संस्कृतियों भाषा.भाषी व जातीय वर्गों में सामंजस्य स्थापित किया जा सके। लेकिन 1947 में पाकिस्तान के निर्माण फलस्वरूप संविधान सभा ने प्रांतीय स्वायत्तता के सभी आदशों को पीछे धकेल दिया। देश की एकता के लिए उनका एक मात्र ध्येय यह था कि केन्द्र को शक्तिशाली बनाया जाये। देश के बंटवारे से प्रभावित होकर संविधान निर्माताओं ने वैयक्तिक स्वतन्त्रताओंए प्रान्तीय स्वायत्तताए क्षेत्रीयतावाद आदि की उपेक्षा करके राष्ट्रीय एकीकरण के हेतु एकीकृत संघीय ढांचे की रचना की। उन्होंने संघात्मक व एकात्मक ढांचे को प्रणालियों की नई एक दूसरे की परस्पर विरोधी है को मिलाकर एक विचित्र संघीय पद्धति का निर्माण किया जिसमें राज्यों की तुलना में केन्द्रीय सरकार को कई गुणा अधिक शक्तियों सौंपी गई है।
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