भारतीय संघवाद में राज्यों के पुनर्गठन की उभरती प्रवृत्तियाँ एवं राष्ट्रीय एकीकरण
मंजू मेघवालए डॉ संजय भारद्वाज
Page No. : 14-17
ABSTRACT
देश की स्वाधीनता के बाद भारत की विशालताए अनेकताए देशी रियासतों की समस्याए
क्षेत्रीयता और साझदायिकता की समस्या प्रमुखतः ज्वलन्त थी। देश में अनेकता की एकता के
आधार पर राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य से हमारी राजनीतिक व्यवस्था में संघीय ढांचे को
स्वीकार किया गया ताकि विभिन्न धर्मोए संस्कृतियों भाषा.भाषी व जातीय वर्गों में सामंजस्य
स्थापित किया जा सके। लेकिन 1947 में पाकिस्तान के निर्माण फलस्वरूप संविधान सभा ने
प्रांतीय स्वायत्तता के सभी आदर्शों को पीछे धकेल दिया। देश की एकता के लिए उनका एक
मात्र ध्येय यह था कि केन्द्र को शक्तिशाली बनाये। देश के बंटवारे से प्रभावित होकर
द्य संविधान निर्माताओं ने वैयक्तिक स्वतन्त्रताओंए प्रतिीय स्वायत्तताए क्षेत्रीयतावाद आदि की
द्य उपेक्षा करके राष्ट्रीय एकीकरण के हेतु एकीकृत संघीय ढांचे की रचना की। उन्होंने संघात्मक
व एकात्मक ढांचे की प्रणालियों को जो एक दूसरे की परस्पर विरोधी है को मिलाकर एक
विचित्र संघीय पद्धति का निर्माण किया जिसमें राज्यों की तुलना में केन्द्रीय सरकार को कई
गुणा अधिक शक्तियों सौंपी गई है।
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