Issue Details
भक्तिकालीन काव्य का सांस्कृतिक अवदान
डाॅ. बलबीर सिंह
Page No. : 99-103
ABSTRACT
संस्कृति किसी भी सभ्य समाज का परिष्कृत रूप है। किसी भी समाज अथवा देश की सही पहचान उसकी संस्कृति से होती है। संस्कृति का निर्माण समाज अथवा देश के सामाजिक राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं नैतिक जीवन मूल्यों के आधार और संस्कार में निहित होती है। संस्कृति में सदैव एक सभ्य विचार विद्यमान रहता है बिना सभ्य विचार के संस्कृति की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती। असभ्य विचार को संस्कृति कभी भी स्वीकृति नहीं देती। ‘‘संस्कृति कभी किसी कच्चे विचार को स्वीकार नहीं करती। संस्कृति हमेशा परिमार्जन, परख और परिशोधन के बाद किसी विचार और व्यवहार को सांस्कृतिक दर्जा देती है।’’1 हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग भक्तिकाल मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण विचारधारा है। यह सांस्कृतिक विचारधारा सीधे तौर पर भारतीय संस्कृति का मुख्य स्रोत है। डा.ॅ ओम प्रकाश सारस्वत के मतानुसार-’’हमारी संस्कृति गुण या मूल्य हैं- दया, प्रेम, करूणा, सहानुभूति, सत्य, अहिंसा, परोपकार, आस्था, श्ऱ़़़द्धा, क्षमा, उदारता, विश्वबंधुत्व की भावना, त्याग एवं संयम तथा सदाचार आदि’’2 इन सांस्कृतिक मूल्यों को व्यक्ति के भाव-विचार तथा व्यवहार से अभिव्यक्ति मिलती है। यही सांस्कृतिक मूल्य हिंदी साहित्य के भक्तिकाल में प्रचूर मात्रा में मिलते हैं।
FULL TEXT